नवाज़िश करम शुक्रिया मेहरबानी
नवाज़िश करम शुक्रिया मेहरबानी
मुझे बख़्श दी आपने ज़िंदगानी
नवाज़िश करम शुक्रिया मेहरबानी
जवानी की जलती हुई दोपहर में
ये ज़ुल्फ़ों के साये घनेरे घनेरे
अजब धूप छाँव का आलम है तारी
महकता उजाला चमकते अंधेरे
ज़मीं की फ़ज़ा हो गई आसमानी
नवाज़िश करम शुक्रिया मेहरबानी
लबों की ये कलियाँ खिली अध-खिली सी
ये मख़नूर आँखें गुलाबी गुलाबी
बदन का ये कुन्दन सुनहरा सुनहरा
ये कद है कि छूटी हुई माहताबी
हमेशा सलामत रहे ये जवानी
नवाज़िश करम शुक्रिया मेहरबानी
मुझे बख़्श दी आपने ज़िंदगानी
नवाज़िश करम शुक्रिया मेहरबानी